देवताओं की सृष्टि आठ प्रकार की है—(१) देवता (२) पितरगण (३) असुरगण (४) गन्धर्व तथा अप्सराएँ (५) यक्ष तथा राक्षस (६) सिद्ध, चारण तथा विद्याधर (७) भूत, प्रेत तथा पिशाच (८) किन्नर—अतिमानवीय प्राणी, देवलोक के गायक इत्यादि। ये सब ब्रह्माण्ड के स्रष्टा ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न हैं।
तात्पर्य
जैसाकि श्रीमद्भागवत के द्वितीय स्कन्ध में बताया जा चुका है, सिद्धगण सिद्धलोक के निवासी हैं जहाँ के रहने वाले बिना यान के अन्तरिक्ष में यात्रा करते हैं। वे इच्छामात्र से, बिना कठिनाई के, एक लोक से दूसरे लोक में चले जा सकते हैं। अतएव उच्चतर लोगों के निवासी इस लोक के निवासियों की तुलना में कला, संस्कृति तथा विज्ञान के मामले में कहीं श्रेष्ठ हैं, क्योंकि उनके मस्तिष्क मनुष्यों के मस्तिष्कों से श्रेष्ठ हैं। इस सन्दर्भ में उल्लिखित भूतप्रेतों की भी गणना देवताओं में की जाती है, क्योंकि वे असामान्य कार्य करने में सक्षम हैं, जो मनुष्यों के लिए सम्भव नहीं हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.