श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 11: परमाणु से काल की गणना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.11.12 
अयने चाहनी प्राहुर्वत्सरो द्वादश स्मृत: ।
संवत्सरशतं नृणां परमायुर्निरूपितम् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
अयने—सूर्य की गति (छह मास की) में; च—तथा; अहनी—देवताओं का दिन; प्राहु:—कहा जाता है; वत्सर:—एक पंचांग वर्ष; द्वादश—बारह मास; स्मृत:—ऐसा कहलाता है; संवत्सर-शतम्—एक सौ वर्ष; नृणाम्—मनुष्यों की; परम-आयु:—जीवन की अवधि, उम्र; निरूपितम्—अनुमानित की जाती है ।.
 
अनुवाद
 
 दो सौर गतियों से देवताओं का एक दिन तथा एक रात बनते हैं और दिन-रात का यह संयोग मनुष्य के एक पूर्ण पंचांग वर्ष के तुल्य है। मनुष्य की आयु एक सौ वर्ष की है।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥