श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 11: परमाणु से काल की गणना  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.11.16 
विदुर उवाच
पितृदेवमनुष्याणामायु: परमिदं स्मृतम् ।
परेषां गतिमाचक्ष्व ये स्यु:कल्पाद् बहिर्विद: ॥ १६ ॥
 
शब्दार्थ
विदुर: उवाच—विदुर ने कहा; पितृ—पितृलोक; देव—स्वर्गलोक; मनुष्याणाम्—तथा मनुष्यों की; आयु:—आयु; परम्— अन्तिम; इदम्—उनकी अपनी माप में; स्मृतम्—परिगणित; परेषाम्—श्रेष्ठ जीवों की; गतिम्—आयु; आचक्ष्व—कृपया गणना करें; ये—वे जो; स्यु:—हैं; कल्पात्—कल्प से; बहि:—बाहर; विद:—अत्यन्त विद्वान ।.
 
अनुवाद
 
 विदुर ने कहा : मैं पितृलोकों, स्वर्गलोकों तथा मनुष्यों के लोक के निवासियों की आयु को समझ पाया हूँ। कृपया अब मुझे उन महान् विद्वान जीवों की जीवन अवधि के विषय में बतायें जो कल्प की परिधि के परे हैं।
 
तात्पर्य
 ब्रह्मा के दिन की समाप्ति पर ब्रह्माण्ड का जो आंशिक विलय होता है उससे सारे लोक प्रभावित नहीं होते। अत्यधिक विद्वान जीवों, यथा सनक तथा भृगु के लोक कल्पों के प्रलयों से प्रभावित नहीं होते। सारे लोक विभिन्न प्रकार के हैं और इनमें से हर एक भिन्न कालचक्र द्वारा नियंत्रित होता है। पृथ्वी लोक का काल अन्य अधिक उच्चस्थ लोकों पर लागू नहीं होता। अतएव विदुर यहाँ पर अन्य लोकों की कालावधि के विषय में प्रश्न कर रहे हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥