श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 11: परमाणु से काल की गणना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.11.20 
सन्ध्यासन्ध्यांशयोरन्तर्य: काल: शतसंख्ययो: ।
तमेवाहुर्युगं तज्ज्ञा यत्र धर्मो विधीयते ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
सन्ध्या—पहले का बीच का काल; सन्ध्या-अंशयो:—तथा बाद का बीच का काल; अन्त:—भीतर; य:—जो; काल:—समय की अवधि; शत-सङ्ख्ययो:—सैकड़ों वर्ष; तम् एव—वह अवधि; आहु:—कहते हैं; युगम्—युग; तत्-ज्ञा:—दक्ष ज्योतिर्विद; यत्र—जिसमें; धर्म:—धर्म; विधीयते—सम्पन्न किया जाता है ।.
 
अनुवाद
 
 प्रत्येक युग के पहले तथा बाद के सन्धिकाल, जो कि कुछ सौ वर्षों के होते हैं, जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है, दक्ष ज्योतिर्विदों के अनुसार युग-सन्ध्या या दो युगों के सन्धि काल कहलाते हैं। इन अवधियों में सभी प्रकार के धार्मिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥