हे विदुर, सत्ययुग में मानव जाति ने उचित तथा पूर्णरूप से धर्म के सिद्धान्तों का पालन किया, किन्तु अन्य युगों में ज्यों ज्यों अधर्म प्रवेश पाता गया त्यों त्यों धर्म क्रमश: एक एक अंश घटता गया।
तात्पर्य
सत्ययुग में धार्मिक सिद्धान्तों को पूरी तरह सम्पन्न किया जाता था। धीरे धीरे बाद के युगों में धर्म के सिद्धान्त एक एक अंश करके घटते गए। दूसरे शब्दों में, सम्प्रति एक अंश धर्म है और तीन अंश अधर्म। इसलिए इस युग में लोग अधिक सुखी नहीं हैं।
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