त्रि-लोक्या:—तीनों लोकों के; युग—चार युग; साहस्रम्—एक हजार; बहि:—बाहर; आब्रह्मण:—ब्रह्मलोक तक; दिनम्— दिन है; तावती—वैसा ही (काल); एव—निश्चय ही; निशा—रात है; तात—हे प्रिय; यत्—क्योंकि; निमीलति—सोने चला जाता है; विश्व-सृक्—ब्रह्मा ।.
अनुवाद
तीन लोकों (स्वर्ग, मर्त्य तथा पाताल) के बाहर चार युगों को एक हजार से गुणा करने से ब्रह्मा के लोक का एक दिन होता है। ऐसी ही अवधि ब्रह्मा की रात होती है, जिसमें ब्रह्माण्ड का स्रष्टा सो जाता है।
तात्पर्य
जब ब्रह्माजी अपनी रात्रि के समय सो जाते हैं, तो ब्रह्मलोक से नीचे के तीनों लोक प्रलय जल में निमग्न रहते हैं। सोते हुए ब्रह्माजी गर्भोदकशायी विष्णु के विषय में स्वप्न देखते हैं और ध्वस्त हुए क्षेत्र के पुनर्वासन हेतु भगवान् से आदेश लेते हैं।
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