निशा—रात; अवसाने—समाप्ति; आरब्ध:—प्रारम्भ करते हुए; लोक-कल्प:—तीन लोकों की फिर से उत्पत्ति; अनुवर्तते— पीछे पीछे आती है; यावत्—जब तक; दिनम्—दिन का समय; भगवत:—भगवान् (ब्रह्मा) का; मनून्—मनुओं; भुञ्जन्— विद्यमान रहते हुए; चतु:-दश—चौदह ।.
अनुवाद
ब्रह्मा की रात्रि के अन्त होने पर ब्रह्मा के दिन के समय तीनों लोकों का पुन: सृजन प्रारम्भ होता है और वे एक के बाद एक लगातार चौदह मनुओं के जीवन काल तक विद्यमान रहते हैं।
तात्पर्य
प्रत्येक मनु के जीवन के अन्त में छोटे छोटे प्रलय भी होते रहते हैं।
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