श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 11: परमाणु से काल की गणना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.11.27 
मन्वन्तरेषु भगवान् बिभ्रत्सत्त्वं स्वमूर्तिभि: ।
मन्वादिभिरिदं विश्वमवत्युदितपौरुष: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
मनु-अन्तरेषु—प्रत्येक मनु-परिवर्तन में; भगवान्—भगवान्; बिभ्रत्—प्रकट करते हुए; सत्त्वम्—अपनी अन्तरंगा शक्ति; स्व- मूर्तिभि:—अपने विभिन्न अवतारों द्वारा; मनु-आदिभि:—मनुओं के रूप में; इदम्—यह; विश्वम्—ब्रह्माण्ड; अवति—पालन करता है; उदित—खोजी; पौरुष:—दैवशक्तियाँ ।.
 
अनुवाद
 
 प्रत्येक मनु के बदलने के साथ पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् विभिन्न अवतारों के रूप में यथा मनु इत्यादि के रूप में अपनी अन्तरंगा शक्ति प्रकट करते हुए अवतीर्ण होते हैं। इस तरह प्राप्त हुई शक्ति से वे ब्रह्माण्ड का पालन करते हैं।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥