तमोमात्रामुपादाय प्रतिसंरुद्धविक्रम: ।
कालेनानुगताशेष आस्ते तूष्णीं दिनात्यये ॥ २८ ॥
शब्दार्थ
तम:—तमोगुण या रात का अंधकार; मात्राम्—नगण्य अंशमात्र; उपादाय—स्वीकार करके; प्रतिसंरुद्ध-विक्रम:—अभिव्यक्ति की सारी शक्ति को रोक करके; कालेन—नित्य काल के द्वारा; अनुगत—विलीन; अशेष:—असंख्य जीव; आस्ते—रहता है; तूष्णीम्—मौन; दिन-अत्यये—दिन का अन्त होने पर ।.
अनुवाद
दिन का अन्त होने पर तमोगुण के नगण्य अंश के अन्तर्गत ब्रह्माण्ड की शक्तिशाली अभिव्यक्ति रात के अँधेरे में लीन हो जाती है। नित्यकाल के प्रभाव से असंख्य जीव उस प्रलय में लीन रहते हैं और हर वस्तु मौन रहती है।
तात्पर्य
यह श्लोक ब्रह्मा की रात्रि की व्याख्या है, जो प्रकृति के तमोगुण के क्षुद्र अंश के सम्पर्क में काल के प्रभाव का परिणाम है। तीनों लोकों का प्रलय तमस के अवतार रुद्र द्वारा लाया जाता है, जो नित्य काल की उस अग्नि के द्वारा प्रदर्शित होता है, जो तीनों लोकों में प्रज्ज्वलित रहती है। ये तीनों लोक भू:, भुव: तथा स्व: (पाताल, मर्त्य तथा स्वर्ग) कहलाते हैं। असंख्य जीव उस प्रलय में लीन होते हैं, जो परमेश्वर की शक्ति के दृश्य पर पटाक्षेप जैसी प्रतीत होती है और इस तरह हर वस्तु मौन हो जाती है।
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