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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 11: परमाणु से काल की गणना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  3.11.3 
एवं कालोऽप्यनुमित: सौक्ष्म्ये स्थौल्ये च सत्तम ।
संस्थानभुक्त्या भगवानव्यक्तो व्यक्तभुग्विभु: ॥ ३ ॥
 
शब्दार्थ
एवम्—इस प्रकार; काल:—समय; अपि—भी; अनुमित:—मापा हुआ; सौक्ष्म्ये—सूक्ष्म में; स्थौल्ये—स्थूल रूप में; —भी; सत्तम—हे सर्वश्रेष्ठ; संस्थान—परमाणुओं का संयोग; भुक्त्या—गति द्वारा; भगवान्—भगवान्; अव्यक्त:—अप्रकट; व्यक्त- भुक्—समस्त भौतिक गति को नियंत्रित करने वाला; विभु:—महान् बलवान् ।.
 
अनुवाद
 
 काल को शरीरों के पारमाणविक संयोग की गतिशीलता के द्वारा मापा जा सकता है। काल उन सर्वशक्तिमान भगवान् हरि की शक्ति है, जो समस्त भौतिक गति का नियंत्रण करते हैं यद्यपि वे भौतिक जगत में दृष्टिगोचर नहीं हैं।
 
 
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