त्रि-लोक्याम्—जब तीनों लोको के मंडल; दह्यमानायाम्—प्रज्ज्वलित; शक्त्या—शक्ति के द्वारा; सङ्कर्षण—संकर्षण के मुख से; अग्निना—आग से; यान्ति—जाते हैं; ऊष्मणा—ताप से तपे हुए; मह:-लोकात्—महर्लोक से; जनम्—जनलोक; भृगु— भृगु मुनि; आदय:—इत्यादि; अर्दिता:—पीडि़त ।.
अनुवाद
संकर्षण के मुख से निकलने वाली अग्नि के कारण प्रलय होता है और इस तरह भृगु इत्यादि महर्षि तथा महर्लोक के अन्य निवासी उस प्रज्ज्वलित अग्नि की उष्मा से, जो नीचे के तीनों लोकों में लगी रहती है, व्याकुल होकर जनलोक को चले जाते हैं।
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