श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 11: परमाणु से काल की गणना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.11.7 
निमेषस्त्रिलवो ज्ञेय आम्नातस्ते त्रय: क्षण: ।
क्षणान् पञ्च विदु: काष्ठां लघु ता दश पञ्च च ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
निमेष:—निमेष नामक काल की अवधि; त्रि-लव:—तीन लवों की अवधि; ज्ञेय:—जानी जानी चाहिए; आम्नात:—ऐसा कहलाते हैं; ते—वे; त्रय:—तीन; क्षण:—क्षण; क्षणान्—ऐसे क्षण; पञ्च—पाँच; विदु:—समझना चाहिए; काष्ठाम्—काष्ठा नामक कालावधि; लघु—लघु नामक कालावधि; ता:—वे; दश पञ्च—पन्द्रह; च—भी ।.
 
अनुवाद
 
 तीन लवों की कालावधि एक निमेष के तुल्य है, तीन निमेष मिलकर एक क्षण बनाते हैं, पाँच क्षण मिलकर एक काष्ठा और पन्द्रह काष्ठा मिलकर एक लघु बनाते हैं।
 
तात्पर्य
 गणना से ज्ञात होता है कि लघु दो मिनट के तुल्य होता है। वैदिक विद्या के रूप में काल की पारमाणविक गणना को समझने के लिए इसी आधार पर वर्तमान समय में परिणत किया जा सकता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥