श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 11: परमाणु से काल की गणना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.11.8 
लघूनि वै समाम्नाता दश पञ्च च नाडिका ।
ते द्वे मुहूर्त: प्रहर: षड्याम: सप्त नृणाम् ॥ ८ ॥
 
शब्दार्थ
लघूनि—ऐसे लघु (प्रत्येक दो मिनट का); वै—सही सही; समाम्नाता—कहलाता है; दश पञ्च—पन्द्रह; च—भी; नाडिका— एक नाडिका; ते—उनमें से; द्वे—दो; मुहूर्त:—क्षण; प्रहर:—तीन घंटे; षट्—छ:; याम:—दिन या रात का चौथाई भाग; सप्त—सात; वा—अथवा; नृणाम्—मनुष्य की गणना का ।.
 
अनुवाद
 
 पन्द्रह लघु मिलकर एक नाडिका बनाते हैं जिसे दण्ड भी कहा जाता है। दो दण्ड से एक मुहूर्त बनता है। और मानवीय गणना के अनुसार छ: या सात दण्ड मिलकर दिन या रात का चतुर्थांश बनाते हैं।
 
 
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