मैत्रेय उवाच
इति ते वर्णित: क्षत्त: कालाख्य: परमात्मन: ।
महिमा वेदगर्भोऽथ यथास्राक्षीन्निबोध मे ॥ १ ॥
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—श्री मैत्रेय ने कहा; इति—इस प्रकार; ते—तुमसे; वर्णित:—वर्णन किया गया; क्षत्त:—हे विदुर; काल- आख्य:—नित्य काल नामक; परमात्मन:—परमात्मा की; महिमा—ख्याति; वेद-गर्भ:—वेदों के आगार, ब्रह्मा; अथ—इसके बाद; यथा—जिस तरह यह है; अस्राक्षीत्—उत्पन्न किया; निबोध—समझने का प्रयास करो; मे—मुझसे ।.
अनुवाद
श्री मैत्रेय ने कहा : हे विद्वान विदुर, अभी तक मैंने तुमसे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के काल रूप की महिमा की व्याख्या की है। अब तुम मुझसे समस्त वैदिक ज्ञान के आगार ब्रह्मा की सृष्टि के विषय में सुन सकते हो।
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All glories to saints and sages of the Supreme Lord
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥