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श्लोक 3.12.15  |
इत्यादिष्ट: स्वगुरुणा भगवान्नीललोहित: ।
सत्त्वाकृतिस्वभावेन ससर्जात्मसमा: प्रजा: ॥ १५ ॥ |
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शब्दार्थ |
इति—इस प्रकार; आदिष्ट:—आदेश दिये जाने पर; स्व-गुरुणा—अपने ही गुरु द्वारा; भगवान्—अत्यन्त शक्तिशाली; नील लोहित:—रुद्र, जिनका रंग नीले तथा लाल का मिश्रण है; सत्त्व—शक्ति; आकृति—शारीरिक स्वरूप; स्वभावेन—तथा अत्यन्त उग्र स्वभाव से; ससर्ज—उत्पन्न किया; आत्म-समा:—अपने ही तरह की; प्रजा:—सन्तानें ।. |
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अनुवाद |
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नील-लोहित शारीरिक रंग वाले अत्यन्त शक्तिशाली रुद्र ने अपने ही समान स्वरूप, बल तथा उग्र स्वभाव वाली अनेक सन्तानें उत्पन्न कीं। |
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