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श्लोक |
पुलहो नाभितो जज्ञे पुलस्त्य: कर्णयोऋर्षि: ।
अङ्गिरा मुखतोऽक्ष्णोऽत्रिर्मरीचिर्मनसोऽभवत् ॥ २४ ॥ |
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शब्दार्थ |
पुलह:—पुलह मुनि; नाभित:—नाभि से; जज्ञे—उत्पन्न किया; पुलस्त्य:—पुलस्त्यमुनि; कर्णयो:—कानों से; ऋषि:—महामुनि; अङ्गिरा:—अंगिरा मुनि; मुखत:—मुख से; अक्ष्ण:—आँखों से; अत्रि:—अत्रि मुनि; मरीचि:—मरीचि मुनि; मनस:—मन से; अभवत्—प्रकट हुए ।. |
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अनुवाद |
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पुलस्त्य ब्रह्मा के कानों से, अंगिरा मुख से, अत्रि आँखों से, मरीचि मन से तथा पुलह नाभि से उत्पन्न हुए। |
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