अपने पापमय कृत्यों की क्षति-पूर्ति के लिए प्रायश्चित्त का सर्वोत्तम उपाय अपने शरीर को तुरन्त त्याग देना है और जीवों के नायक ब्रह्मा ने इसे अपने उदाहरण से दिखला दिया। ब्रह्मा की आयु असीम होती है किन्तु उन्हें अपने घोर पाप के कारण, जिसे उन्होंने मन में केवल सोचा ही था, वास्तव में किया नहीं था, अपना शरीर त्यागना पड़ा। यह जीवों के लिए शिक्षा है, जो यह दिखाती है कि अनियंत्रित यौन जीवन में संलग्न होना कितना पापपूर्ण कृत्य है। गर्हित यौन जीवन के विषय में सोचना भी पापपूर्ण है और ऐसे पापपूर्ण कृत्यों की क्षतिपूर्ति के लिए मनुष्य को अपना शरीर त्यागना होता है। दूसरे शब्दों में, मनुष्य की आयु, वरदान, ऐश्वर्य इत्यादि सभी बातें पापपूर्ण कृत्यों से घटती हैं और सबसे भयावह पापपूर्ण कृत्य है अनियंत्रित यौन।
पापमय जीवन का कारण अज्ञान है अथवा पापमय जीवन ही निपट अज्ञान का कारण है। अज्ञान की विशेषता है अंधकार या कुहरा। अंधकार या कुहरा अब भी सारे ब्रह्माण्ड को आच्छादित किये है और सूर्य एकमात्र उसका प्रतिकार है। जो व्यक्ति नित्य प्रकाश रूप भगवान् की शरण ग्रहण करता है उसे कुहरे या अज्ञान के अंधकार में विलोप होने का भय नहीं रहता।