|
|
|
श्लोक 3.12.36  |
विदुर उवाच
स वै विश्वसृजामीशो वेदादीन् मुखतोऽसृजत् ।
यद् यद् येनासृजद् देवस्तन्मे ब्रूहि तपोधन ॥ ३६ ॥ |
|
शब्दार्थ |
विदुर: उवाच—विदुर ने कहा; स:—वह (ब्रह्मा); वै—निश्चय ही; विश्व—ब्रह्माण्ड; सृजाम्—सृजनकर्ताओं का; ईश:— नियन्ता; वेद-आदीन्—वेद इत्यादि.; मुखत:—मुख से; असृजत्—स्थापित किया; यत्—जो; यत्—जो; येन—जिससे; असृजत्—उत्पन्न किया; देव:—देवता; तत्—वह; मे—मुझसे; ब्रूहि—बतलाइये; तप:-धन—हे मुनि, तपस्या जिसका एकमात्र धन है ।. |
|
अनुवाद |
|
विदुर ने कहा, हे तपोधन महामुनि, कृपया मुझसे यह बतलाएँ कि ब्रह्मा ने किस तरह और किसकी सहायता से उस वैदिक ज्ञान की स्थापना की जो उनके मुख से निकला था। |
|
|
|
शेयर करें
 |