मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; ऋक्-यजु:-साम-अथर्व—चारों वेद; आख्यान्—नामक; वेदान्—वैदिक ग्रन्थ; पूर्व- आदिभि:—सामने से प्रारम्भ करके; मुखै:—मुखों से; शास्त्रम्—पूर्व अनुच्चरित वैदिक मंत्र; इज्याम्—पौरोहित्य अनुष्ठान; स्तुति-स्तोमम्—बाँचने वालों की विषयवस्तु; प्रायश्चित्तम्—दिव्य कार्य; व्यधात्—स्थापित किया; क्रमात्—क्रमश: ।.
अनुवाद
मैत्रेय ने कहा : ब्रह्मा के सामने वाले मुख से प्रारम्भ होकर क्रमश: चारों वेद—ऋक्, यजु:, साम और अथर्व—आविर्भूत हुए। तत्पश्चात् इसके पूर्व अनुच्चरित वैदिक स्त्तोत्र, पौरोहित्य अनुष्ठान, पाठ की विषयवस्तु तथा दिव्य कार्यकलाप एक-एक करके स्थापित किये गये।
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