श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 12: कुमारों तथा अन्यों की सृष्टि  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  3.12.38 
आयुर्वेदं धनुर्वेदं गान्धर्वं वेदमात्मन: ।
स्थापत्यं चासृजद् वेदं क्रमात्पूर्वादिभिर्मुखै: ॥ ३८ ॥
 
शब्दार्थ
आयु:-वेदम्—औषधि विज्ञान; धनु:-वेदम्—सैन्य विज्ञान; गान्धर्वम्—संगीतकला; वेदम्—ये सभी वैदिक ज्ञान हैं; आत्मन:— अपने से; स्थापत्यम्—वास्तु सम्बन्धी विज्ञान; च—भी; असृजत्—सृष्टि की; वेदम्—ज्ञान; क्रमात्—क्रमश:; पूर्व-आदिभि:— सामने वाले मुख से प्रारम्भ करके; मुखै:—मुखों द्वारा ।.
 
अनुवाद
 
 उन्होंने ओषधि विज्ञान, सैन्य विज्ञान, संगीत कला तथा स्थापत्य विज्ञान की भी सृष्टि वेदों से की। ये सभी सामने वाले मुख से प्रारम्भ होकर क्रमश: प्रकट हुए।
 
तात्पर्य
 वेदों में पूर्ण ज्ञान पाया जाता है, जिसमें न केवल इस लोक के अपितु अन्य मानव लोकों के समाज के लिए भी आवश्यक सभी प्रकार का ज्ञान सम्मिलित है। ऐसा समझा जाता है कि सामाजिक व्यवस्था बनाये रखने के लिए सैन्य कला भी उसी तरह आवश्यक ज्ञान है, जिस तरह संगीत कला है। ज्ञान के ये सारे समूह उप-पुराण या वेदों के पूरक कहलाते हैं। वेदों का मुख्य विषय आध्यात्मिक ज्ञान है। किन्तु मनुष्यों के ज्ञान की आध्यात्मिक रुचि में सहायता पहुँचाने के लिए अन्य जानकारी वैदिक ज्ञान की आवश्यक सूचनाओं का निर्माण करती है जैसाकि ऊपर कहा गया है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥