पुत्रों को उत्पन्न करने के बाद ब्रह्मा ने उनसे कहा, “पुत्रो, अब तुम लोग सन्तान उत्पन्न करो।” किन्तु पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् वासुदेव के प्रति अनुरक्त होने के कारण उन्होंने अपना लक्ष्य मोक्ष बना रखा था, अतएव उन्होंने अपनी अनिच्छा प्रकट की।
तात्पर्य
ब्रह्मा के चारों पुत्रों, कुमारों ने अपने महान् पिता ब्रह्मा के अनुरोध करने पर भी गृहस्थ बनने से इनकार कर दिया। जो लोग भव-बन्धन से छुटकारा पाने के लिए तत्पर हैं उन्हें मिथ्या पारिवारिक बन्धन में नहीं बँधना चाहिए। लोग यह पूछ सकते हैं कि कुमारों ने अपने पिता विशेषकर ब्रह्माण्ड के स्रष्टा ब्रह्मा के आदेशों से इनकार क्यों किया? इसका उत्तर यह है कि जो वासुदेव-परायण हैं, अर्थात् जो भगवान् वासुदेव की भक्ति में गम्भीरतापूर्वक लगे हुए हैं उन्हें अन्य किसी कार्य की परवाह करने की आवश्यकता नहीं है। भागवत (११.५.४१) में आदेश है कि—
देवर्षिभूताप्तनृणां पितृणां न किंकरो नायमृणी च राजन्।
“जिस किसी ने भी समस्त सांसारिक सम्बन्धों का परित्याग कर दिया है और उन भगवान् के चरणकमलों की पूर्ण शरण ले रखी है, जो हमारे मोक्षदाता हैं और एकमात्र शरण-ग्रहण करने के योग्य हैं वह किसी का न तो ऋणी है न किसी का दास है चाहे वह देवता, पितर, मुनि सम्बन्धी तथा अन्य जीव सम्बन्धी तथा मानव समाज का सदस्य क्यों न हो।” इस तरह जब कुमारों ने अपने महान् पिता के इस अनुरोध को ठुकरा दिया कि वे गृहस्थ बन जाँय तो उनके इस कार्य में कोई त्रुटि न थी।
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