हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 12: कुमारों तथा अन्यों की सृष्टि  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  3.12.54 
यस्तु तत्र पुमान् सोऽभून्मनु: स्वायम्भुव: स्वराट् ।
स्त्री याऽसीच्छतरूपाख्या महिष्यस्य महात्मन: ॥ ५४ ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो; तु—लेकिन; तत्र—वहाँ; पुमान्—नर; स:—वह; अभूत्—बना; मनु:—मनुष्यजाति का पिता; स्वायम्भुव:— स्वायंभुव नामक; स्व-राट्—पूर्णतया स्वतंत्र; स्त्री—नारी; या—जो; आसीत्—थी; शतरूपा—शतरूपा; आख्या—नामक; महिषी—रानी; अस्य—उसकी; महात्मन:—महात्मा ।.
 
अनुवाद
 
 इनमें से जिसका नर रूप था वह स्वायंभुव मनु कहलाया और नारी शतरूपा कहलायी जो महात्मा मनु की रानी के रुप में जानी गई।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.
   
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥