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श्लोक 3.12.54  |
यस्तु तत्र पुमान् सोऽभून्मनु: स्वायम्भुव: स्वराट् ।
स्त्री याऽसीच्छतरूपाख्या महिष्यस्य महात्मन: ॥ ५४ ॥ |
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शब्दार्थ |
य:—जो; तु—लेकिन; तत्र—वहाँ; पुमान्—नर; स:—वह; अभूत्—बना; मनु:—मनुष्यजाति का पिता; स्वायम्भुव:— स्वायंभुव नामक; स्व-राट्—पूर्णतया स्वतंत्र; स्त्री—नारी; या—जो; आसीत्—थी; शतरूपा—शतरूपा; आख्या—नामक; महिषी—रानी; अस्य—उसकी; महात्मन:—महात्मा ।. |
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अनुवाद |
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इनमें से जिसका नर रूप था वह स्वायंभुव मनु कहलाया और नारी शतरूपा कहलायी जो महात्मा मनु की रानी के रुप में जानी गई। |
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