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श्लोक 3.12.56  |
स चापि शतरूपायां पञ्चापत्यान्यजीजनत् ।
प्रियव्रतोत्तानपादौ तिस्र: कन्याश्च भारत ।
आकूतिर्देवहूतिश्च प्रसूतिरिति सत्तम ॥ ५६ ॥ |
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शब्दार्थ |
स:—वह (मनु); च—भी; अपि—कालान्तर में; शतरूपायाम्—शतरूपा में; पञ्च—पाँच; अपत्यानि—सन्तानें; अजीजनत्— उत्पन्न किया; प्रियव्रत—प्रियव्रत; उत्तानपादौ—उत्तानपाद; तिस्र:—तीन; कन्या:—कन्याएँ; च—भी; भारत—हे भरत के पुत्र; आकूति:—आकूति; देवहूति:—देवहूति; च—तथा; प्रसूति:—प्रसूति; इति—इस प्रकार; सत्तम—हे सर्वश्रेष्ठ ।. |
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अनुवाद |
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हे भरतपुत्र, समय आने पर उसने (मनु ने) शतरूपा से पाँच सन्तानें उत्पन्न कीं—दो पुत्र प्रियव्रत तथा उत्तानपाद एवं तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति तथा प्रसूति। |
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