पिता मनु ने अपनी पहली पुत्री आकूति रुचि मुनि को दी, मझली पुत्री देवहूति कर्दम मुनि को और सबसे छोटी पुत्री प्रसूति दक्ष को दी। उनसे सारा जगत जनसंख्या से पूरित हो गया।
तात्पर्य
यहाँ पर ब्रह्माण्ड की जनसंख्या के सृजन का इतिहास दिया गया है। ब्रह्माजी ब्रह्माण्ड में आदि जीवित प्राणी हैं जिनसे मनु स्वायंभुव तथा उनकी पत्नी शतरूपा उत्पन्न हुई। मनु से दो पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं और उन सबों से आज तक विभिन्न लोकों की जन-संख्या उत्पन्न हुई है। इसलिए ब्रह्मा सबों के पितामह कहलाते हैं और भगवान् ब्रह्मा के पिता होने से सारे जीवों के प्रपितामह कहलाते हैं। इसकी पुष्टि भगवद्गीता (११.३९) में इस प्रकार हुई है—
“आप वायु के स्वामी, परम न्यायी यम, अग्नि तथा वर्षा के स्वामी हैं। आप चन्द्रमा हैं तथा आप प्रपितामह हैं। अतएव मैं आपको पुन: पुन: सादर नमस्कार करता हूँ।”
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के तृतीय स्कन्ध के अन्तर्गत “कुमारों तथा अन्यों की सृष्टि” नामक बारहवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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