श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 12: कुमारों तथा अन्यों की सृष्टि  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  3.12.6 
सोऽवध्यात: सुतैरेवं प्रत्याख्यातानुशासनै: ।
क्रोधं दुर्विषहं जातं नियन्तुमुपचक्रमे ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह (ब्रह्मा); अवध्यात:—इस प्रकार अनादरित होकर; सुतै:—पुत्रों द्वारा; एवम्—इस प्रकार; प्रत्याख्यात—आज्ञा मानने से इनकार; अनुशासनै:—अपने पिता के आदेश से; क्रोधम्—क्रोध; दुर्विषहम्—असहनीय; जातम्—इस प्रकार उत्पन्न; नियन्तुम्—नियंत्रण करने के लिए; उपचक्रमे—भरसक प्रयत्न किया ।.
 
अनुवाद
 
 पुत्रों द्वारा अपने पिता के आदेश का पालन करने से इनकार करने पर ब्रह्मा के मन में अत्यधिक क्रोध उत्पन्न हुआ जिसे उन्होंने व्यक्त न करके दबाए रखना चाहा।
 
तात्पर्य
 ब्रह्माजी भौतिक प्रकृति के रजोगुण के प्रभारी निदेशक हैं। अतएव अपने पुत्रों द्वारा अपने आदेश का उल्लंघन होने पर उनका क्रुद्ध होना स्वाभाविक था। यद्यपि कुमारों द्वारा ऐसे कार्य से इनकार किया जाना उचित था, किन्तु रजोगुण में लीन होने से ब्रह्माजी अपना आवेशपूर्ण क्रोध रोक नहीं सके। किन्तु उन्होंने उसे व्यक्त नहीं किया, क्योंकि वे जानते थे कि उनके पुत्र आध्यात्मिक उन्नति में अत्यधिक प्रबुद्ध हैं, अतएव उन्हें उनके समक्ष अपना क्रोध व्यक्त नहीं करना चाहिए।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥