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श्लोक |
मैत्रेय उवाच
परमेष्ठी त्वपां मध्ये तथा सन्नामवेक्ष्य गाम् ।
कथमेनां समुन्नेष्य इति दध्यौ धिया चिरम् ॥ १६ ॥ |
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शब्दार्थ |
मैत्रेय: उवाच—श्री मैत्रेय मुनि ने कहा; परमेष्ठी—ब्रह्मा; तु—भी; अपाम्—जल के; मध्ये—भीतर; तथा—इस प्रकार; सन्नाम्—स्थित; अवेक्ष्य—देखकर; गाम्—पृथ्वी को; कथम्—कैसे; एनाम्—यह; समुन्नेष्ये—मैं उठा लूँगा; इति—इस प्रकार; दध्यौ—ध्यान दिया; धिया—बुद्धि से; चिरम्—दीर्घ काल तक ।. |
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अनुवाद |
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श्री मैत्रेय ने कहा : इस प्रकार पृथ्वी को जल में डूबी हुई देखकर ब्रह्मा दीर्घकाल तक सोचते रहे कि इसे किस प्रकार उठाया जा सकता है। |
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तात्पर्य |
जीव गोस्वामी के अनुसार यहाँ पर जिन कथाओं का उद्धाटन किया गया है वे विभिन्न कल्पों की हैं। वर्तमान |
कथाएँ श्वेत वराह कल्प की हैं और चाक्षुष कल्प की कथाओं को भी इसी अध्याय में बतलाया जायेगा। |
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