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श्लोक 3.13.19  |
तस्याभिपश्यत: खस्थ: क्षणेन किल भारत ।
गजमात्र: प्रववृधे तदद्भुतमभून्महत् ॥ १९ ॥ |
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शब्दार्थ |
तस्य—उसका; अभिपश्यत:—इस प्रकार देखते हुए; ख-स्थ:—आकाश में स्थित; क्षणेन—सहसा; किल—निश्चय ही; भारत—हे भरतवंशी; गज-मात्र:—हाथी के समान; प्रववृधे—भलीभाँति विस्तार किया; तत्—वह; अद्भुतम्—असामान्य; अभूत्—बदल गया; महत्—विराट शरीर में ।. |
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अनुवाद |
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हे भरतवंशी, तब ब्रह्मा के देखते ही देखते वह वराह विशाल काय हाथी जैसा अद्भुत विराट स्वरूप धारण करके आकाश में स्थित हो गया। |
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