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श्लोक 3.13.21  |
किमेतत्सूकरव्याजं सत्त्वं दिव्यमवस्थितम् ।
अहो बताश्चर्यमिदं नासाया मे विनि:सृतम् ॥ २१ ॥ |
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शब्दार्थ |
किम्—क्या; एतत्—यह; सूकर—सूकर के; व्याजम्—बहाने से; सत्त्वम्—जीव; दिव्यम्—असामान्य; अवस्थितम्—स्थित; अहो बत—ओह, यह है; आश्चर्यम्—अत्यन्त अद्भुत; इदम्—यह; नासाया:—नाक से; मे—मेरी; विनि:सृतम्—बाहर आया ।. |
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अनुवाद |
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क्या सूकर के बहाने से यह कोई असामान्य व्यक्तित्व आया है? यह अति आश्चर्यप्रद है कि वह मेरी नाक से निकला है। |
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