दानवाकार पर्वत की भाँति जल में गोता लगाते हुए भगवान् वराह ने समुद्र के मध्यभाग को विभाजित कर दिया और दो ऊँची लहरें समुद्र की भुजाओं की तरह प्रकट हुईं जो उच्च स्वर से आर्तनाद कर रही थीं मानो भगवान् से प्रार्थना कर रही हों,“हे समस्त यज्ञों के स्वामी, कृपया मेरे दो खण्ड न करें। कृपा करके मुझे संरक्षण प्रदान करें।”
तात्पर्य
दिव्य शूकर के पर्वत जैसे शरीर के आ गिरने से महासागर तक विचलित था और वह भयभीत प्रतीत हो रहा था मानो मृत्यु निकट हो।
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