श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 13: वराह भगवान् का प्राकट्य  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  3.13.39 
नमो नमस्तेऽखिलमन्त्रदेवता-
द्रव्याय सर्वक्रतवे क्रियात्मने ।
वैराग्यभक्त्यात्मजयानुभावित-
ज्ञानाय विद्यागुरवे नमो नम: ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
नम: नम:—नमस्कार है; ते—आपको, जो कि आराध्य है; अखिल—सभी सम्मिलित रूप से; मन्त्र—मंत्र; देवता—भगवान्; द्रव्याय—यज्ञ सम्पन्न करने की समस्त सामग्रियों को; सर्व-क्रतवे—सभी प्रकार के यज्ञों को; क्रिया-आत्मने—सभी यज्ञों के परम रूप आपको; वैराग्य—वैराग्य; भक्त्या—भक्ति द्वारा; आत्म-जय-अनुभावित—मन को जीतने पर अनुभूत किए जाने वाले; ज्ञानाय—ऐसे ज्ञान को; विद्या-गुरवे—समस्त ज्ञान के परम गुरु को; नम: नम:—मैं पुन: सादर नमस्कार करता हूँ ।.
 
अनुवाद
 
 हे प्रभु, आप पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं और वैश्विक-प्रार्थनाओं, वैदिक मंत्रों तथा यज्ञ की सामग्री द्वारा पूजनीय हैं। हम आपको नमस्कार करते हैं। आप समस्त दृश्य तथा अदृश्य भौतिक कल्मष से मुक्त शुद्ध मन द्वारा अनुभवगम्य हैं। हम आपको भक्ति-योग के ज्ञान के परम गुरु के रूप में सादर नमस्कार करते हैं।
 
तात्पर्य
 भगवद्भक्ति के लिए योग्यता यह है कि भक्त को समस्त भौतिक कल्मषों तथा इच्छाओं से मुक्त होना चाहिए। यह मुक्तावस्था वैराग्य अर्थात् भौतिक इच्छाओं से विरक्ति कहलाती है। जो व्यक्ति विधिविधानों के अनुसार भक्ति में लगा रहता है, वह स्वत: भौतिक इच्छाओं से मुक्त हो जाता है और उस शुद्ध मनोदशा में वह भगवान् की अनुभूति कर सकता है। प्रत्येक के हृदय में स्थित होने से भगवान् भक्त को शुद्धभक्ति के विषय में शिक्षा देते हैं जिससे वह अन्तत: भगवान् की संगति प्राप्त कर सके। इसकी पुष्टि भगवद्गीता (१०.१०) में इस प्रकार हुई है—

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।

ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥

“जो व्यक्ति श्रद्धा तथा प्रेम के साथ निरन्तर भगवान् की भक्ति में लगा रहता है उसे अन्त में भगवान् निश्चित रूप से अपने को प्राप्त करने के लिए बुद्धि प्रदान करते हैं।”

मनुष्य को मन जीतना होता है और वह ऐसा वैदिक अनुष्ठानों द्वारा तथा विभिन्न प्रकार के यज्ञ सम्पन्न करके कर सकता है। इन समस्त कार्यों का चरम अन्त भगवान् की भक्ति प्राप्त करना है। भक्ति के बिना भगवान् को नहीं समझा जा सकता। आदि भगवान् या उनके असंख्य विष्णु अंश ही समस्त वैदिक अनुष्ठानों तथा यज्ञों के द्वारा पूजा के एकमात्र लक्ष्य हैं।

 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥