हे प्रभु, जिस तरह बादलों से अलंकृत होने पर विशाल पर्वतों के शिखर सुन्दर लगने लगते हैं उसी तरह आपका दिव्य शरीर सुन्दर लग रहा है, क्योंकि आप पृथ्वी को अपनी दाढ़ों के सिरे पर उठाये हुए हैं।
तात्पर्य
विभ्रम: शब्द सार्थक है। विभ्रम: का अर्थ है “भ्रम” तथा “सौन्दर्य।” जब कोई बादल किसी विशाल पर्वत की चोटी पर विश्राम करता है, तो ऐसा लगता है मानो उसे पर्वत ने उठा रखा हो। साथ ही वह अत्यन्त सुन्दर लगता है। इसी तरह भगवान् को अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी धारण करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु जब वे ऐसा करते हैं, तो संसार उसी तरह सुन्दर लगने लगता है, जिस तरह भगवान् पृथ्वी पर अपने शुद्ध भक्तों के कारण अधिक सुन्दर लगते हैं। यद्यपि भगवान् वैदिक मंत्रों के दिव्य स्वरूप हैं, किन्तु पृथ्वी को धारण करने के कारण वे अत्यधिक सुन्दर लग रहे हैं।
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