मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; यदा—जब; स्व-भार्यया—अपनी पत्नी के; सार्धम्—साथ में; जात:—प्रकट हुआ; स्वायम्भुव:—स्वायम्भुव मनु; मनु:—मानवजाति का पिता; प्राञ्जलि:—हाथ जोड़े; प्रणत:—नमस्कार करके; च—भी; इदम्—यह; वेद-गर्भम्—वैदिक विद्या के आगार को; अभाषत—सम्बोधित किया ।.
अनुवाद
मैत्रेय मुनि ने विदुर से कहा : मानवजाति के पिता मनु अपनी पत्नी समेत अपने प्राकट्य के बाद वेदविद्या के आगार ब्रह्मा को नमस्कार करके तथा हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोले।
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