हे आराध्य, आप हमें हमारी कार्यक्षमता के अन्तर्गत कार्य करने के लिए अपना आदेश दें जिससे हम इस जीवन में यश के लिए तथा अगले जीवन में प्रगति के लिए उसका पालन कर सकें।
तात्पर्य
ब्रह्माजी तो सीधे भगवान् से वैदिक ज्ञान प्राप्त करने वाले हैं और ब्रह्मा की शिष्य परम्परा में जिस किसी को उनका निहित कार्य सौंपा जाता है, उसे इस जीवन में यश तथा अगले जीवन में मोक्ष प्राप्त होना निश्चित है। ब्रह्मा से चलने वाली शिष्य-परम्परा ब्रह्मसम्प्रदाय कहलाती है और वह इस प्रकार चलती है—ब्रह्मा, नारद, व्यास, मध्व मुनि (पूर्णप्रज्ञ), पद्मनाभ, नृहरि, माधव, अक्षोभ्य, जयतीर्थ, ज्ञानसिन्धु, दयानिधि, विद्यानिधि, राजेन्द्र, जयधर्म, पुरुषोत्तम, ब्रह्मण्यतीर्थ, व्यासतीर्थ, लक्ष्मीपति, माधवेन्द्रपुरी, ईश्वरपुरी, श्री चैतन्य महाप्रभु, स्वरूप दामोदर तथा श्रीरूप गोस्वामी एवं अन्यजन, श्रीरघुनाथ दास गोस्वामी, कृष्णदास गोस्वामी, नरोत्तमदास ठाकुर, विश्वनाथ चक्रवर्ती, जगन्नाथ दास बाबाजी, भक्ति विनोद ठाकुर, गौरकिशोर दास बाबाजी, श्रीमद्भक्ति सिद्धान्त सरस्वती, श्री ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी।
ब्रह्मा से चलने वाली शिष्य-परम्परा की यह धारा आध्यात्मिक है, जबकि मनु से चलने वाली वंश परम्परा भौतिक है, किन्तु दोनों ही कृष्णभावनामृत के एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं।
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