श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.14.10 
दितिरुवाच
एष मां त्वत्कृते विद्वन् काम आत्तशरासन: ।
दुनोति दीनां विक्रम्य रम्भामिव मतङ्गज: ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
दिति: उवाच—सुन्दरी दिति ने कहा; एष:—ये सब; माम्—मुझको; त्वत्-कृते—आपके लिए; विद्वन्—हे विद्वान; काम:— कामदेव; आत्त-शरासन:—अपने तीर लेकर; दुनोति—पीडि़त करता है; दीनाम्—मुझ दीना को; विक्रम्य—आक्रमण करके; रम्भाम्—केले के वृक्ष पर; इव—सदृश; मतम्-गज:—उन्मत्त हाथी ।.
 
अनुवाद
 
 उस स्थान पर सुन्दरी दिति ने अपनी इच्छा व्यक्त की : हे विद्वान, कामदेव अपने तीर लेकर मुझे बलपूर्वक उसी तरह सता रहा है, जिस तरह उन्मत्त हाथी एक केले के वृक्ष को झकझोरता है।
 
तात्पर्य
 अपने पति को समाधिस्थ देखकर सुन्दरी दिति ने जोर जोर से बोलना शुरु किया। उसने अपने शारीरिक हावभाव से उन्हें आकृष्ट करने का प्रयास नहीं किया। उसने खुलकर कहा कि उसके पति की उपस्थिति के कारण उसका सारा शरीर कामेच्छा से उसी तरह पीडि़त हो रहा है, जिस तरह उन्मत्त हाथी द्वारा केले का वृक्ष झकझोरा जाता है। यद्यपि समाधि में लीन पति को चलायमान करना उसे स्वाभाविक नहीं लगा, किन्तु वह अपनी प्रबल काम-क्षुधा को रोक नहीं पाई। उसकी कामेच्छा उन्मत्त हाथी के समान थी, अतएव उसके पति का यह पहला कर्तव्य था कि उसकी इच्छा पूरी करके उसे सभी तरह का संरक्षण प्रदान करे।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥