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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.14.12 
भर्तर्याप्तोरुमानानां लोकानाविशते यश: ।
पतिर्भवद्विधो यासां प्रजया ननु जायते ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
भर्तरि—पति द्वारा; आप्त-उरुमानानाम्—प्रेयसियों का; लोकान्—संसार में; आविशते—फैलता है; यश:—यश; पति:—पति; भवत्-विध:—आपकी तरह; यासाम्—जिसकी; प्रजया—सन्तानों द्वारा; ननु—निश्चय ही; जायते—विस्तार करता है ।.
 
अनुवाद
 
 एक स्त्री अपने पति के आशीर्वाद से संसार में आदर पाती है और सन्तानें होने से आप जैसा पति प्रसिद्धि पाएगा, क्योंकि आप जीवों के विस्तार के निमित्त ही हैं।
 
तात्पर्य
 ऋषभदेव के अनुसार किसी को तब तक पिता या माता नहीं बनना चाहिए जब तक वह विश्वस्त न हो ले कि वह जिन सन्तानों को उत्पन्न करेगा उन्हें वह जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति दिला सकेगा। मानव जीवन ही उस भौतिक घेरे से बाहर निकलने का एकमात्र अवसर है, जो जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा रोग के कष्टों से पूरित है। हर व्यक्ति को अपने मनुष्य जीवन का लाभ उठाने का अवसर मिलना चाहिए और कश्यप जैसे पिता से आशा की जाती है कि मोक्ष के प्रयोजन से वे अच्छी सन्तानें उत्पन्न करें।
 
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