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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.14.13 
पुरा पिता नो भगवान्दक्षो दुहितृवत्सल: ।
कं वृणीत वरं वत्सा इत्यपृच्छत न: पृथक् ॥ १३ ॥
 
शब्दार्थ
पुरा—बुहत काल पूर्व; पिता—पिता; न:—हमारा; भगवान्—अत्यन्त ऐश्वर्यवान्; दक्ष:—दक्ष; दुहितृ-वत्सल:—अपनी पुत्रियों के प्रति स्नेहिल; कम्—किसको; वृणीत—तुम स्वीकार करना चाहते हो; वरम्—अपना पति; वत्सा:—हे मेरी सन्तानो; इति— इस प्रकार; अपृच्छत—पूछा; न:—हमसे; पृथक्—अलग अलग ।.
 
अनुवाद
 
 बहुत काल पूर्व अत्यन्त ऐश्वर्यवान हमारे पिता दक्ष ने, जो अपनी पुत्रियों के प्रति अत्यन्त वत्सल थे, हममें से हर एक को अलग अलग से पूछा कि तुम किसे अपने पति के रूप में चुनना चाहोगी।
 
तात्पर्य
 इस श्लोक से प्रतीत होता है कि पिता द्वारा पति के स्वतंत्र चुनाव की तो अनुमति पुत्री को दी जाती थी, किन्तु स्वच्छन्द संगति के द्वारा नहीं। पुत्रियों को अलग अलग से कहा गया कि वे ऐसे पति का चुनाव करें जो अपने कार्यों तथा व्यक्तित्व के लिए विख्यात हो। अन्तिम चुनाव पिता की रुचि पर निर्भर करता था।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥