श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.14.14 
स विदित्वात्मजानां नो भावं सन्तानभावन: ।
त्रयोदशाददात्तासां यास्ते शीलमनुव्रता: ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
स:—दक्ष; विदित्वा—समझ करके; आत्म-जानाम्—अपनी पुत्रियों के; न:—हमारा; भावम्—संकेत; सन्तान—सन्तानों का; भावन:—हितैषी; त्रयोदश—तेरह; अददात्—प्रदान किया; तासाम्—उन सबों का; या:—जो हैं; ते—तुम्हारे; शीलम्— आचरण; अनुव्रता:—सभी आज्ञाकारिणी ।.
 
अनुवाद
 
 हमारे शुभाकांक्षी पिता दक्ष ने हमारे मनोभावों को जानकर अपनी तेरहों कन्याएँ आपको समर्पित कर दीं और तबसे हम सभी आपकी आज्ञाकारिणी रही हैं।
 
तात्पर्य
 सामान्यतया कन्याएँ अपने पिता के समक्ष अपना मत व्यक्त करने में सकुचाती थीं, किन्तु पिता पुत्रियों के मनोभावों को अन्य किसी के माध्यम से यथा दादी के माध्यम से जिसके साथ पौत्रियों की सीधी पहुँच होती थी, स्वीकार कर लेता था। राजा दक्ष ने अपनी पुत्रियों का मत जाना और इस तरह तेरहों को कश्यप को प्रदान कर दिया। दिति की हर बहिन बच्चों की माता थी। अतएव वह सन्तानहीन क्यों बनी रहे जबकि वह उसी पति के प्रति समान रूप से आज्ञाकारिणी थी?
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥