हमारे शुभाकांक्षी पिता दक्ष ने हमारे मनोभावों को जानकर अपनी तेरहों कन्याएँ आपको समर्पित कर दीं और तबसे हम सभी आपकी आज्ञाकारिणी रही हैं।
तात्पर्य
सामान्यतया कन्याएँ अपने पिता के समक्ष अपना मत व्यक्त करने में सकुचाती थीं, किन्तु पिता पुत्रियों के मनोभावों को अन्य किसी के माध्यम से यथा दादी के माध्यम से जिसके साथ पौत्रियों की सीधी पहुँच होती थी, स्वीकार कर लेता था। राजा दक्ष ने अपनी पुत्रियों का मत जाना और इस तरह तेरहों को कश्यप को प्रदान कर दिया। दिति की हर बहिन बच्चों की माता थी। अतएव वह सन्तानहीन क्यों बनी रहे जबकि वह उसी पति के प्रति समान रूप से आज्ञाकारिणी थी?
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