अथ मे कुरु कल्याणं कामं कमललोचन ।
आर्तोपसर्पणं भूमन्नमोघं हि महीयसि ॥ १५ ॥
शब्दार्थ
अथ—इसलिए; मे—मेरा; कुरु—कीजिये; कल्याणम्—कल्याण; कामम्—इच्छा; कमल-लोचन—हे कमल सदृश नेत्र वाले; आर्त—पीडि़त; उपसर्पणम्—निकट आना; भूमन्—हे महान्; अमोघम्—जो विफल न हो; हि—निश्चय ही; महीयसि— महापुरुष के प्रति ।.
अनुवाद
हे कमललोचन, कृपया मेरी इच्छा पूरी करके मुझे आशीर्वाद दें। जब कोई त्रस्त होकर किसी महापुरुष के पास पहुँचता है, तो उसकी याचना कभी भी व्यर्थ नहीं होनी चाहिए।
तात्पर्य
दिति अच्छी तरह जानती थी कि असामयिक स्थिति के कारण उसकी विनती अस्वीकृत हो सकती है, किन्तु उसने याचना की कि जब आपातकाल हो या त्रासपूर्ण स्थिति आए तो काल या परिस्थिति पर विचार नहीं किया जाता।
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