विदुर: उवाच—श्री विदुर ने कहा; तेन—उसके द्वारा; एव—निश्चय ही; तु—लेकिन; मुनि-श्रेष्ठ—हे मुनियों में श्रेष्ठ; हरिणा— भगवान् द्वारा; यज्ञ-मूर्तिना—यज्ञ का स्वरूप; आदि—मूल; दैत्य:—असुर; हिरण्याक्ष:—हिरण्याक्ष नामक; हत:—मारा गया; इति—इस प्रकार; अनुशुश्रुम—उसी क्रम में सुना है ।.
अनुवाद
श्री विदुर ने कहा : हे मुनिश्रेष्ठ, मैंने शिष्य-परम्परा से यह सुना है कि आदि असुर हिरण्याक्ष उन्हीं यज्ञ रूप भगवान् (वराह) द्वारा मारा गया था।
तात्पर्य
जैसाकि पहले कहा जा चुका है, वराह अवतार दो कल्पों में प्रकट हुआ था—स्वायम्भुव कल्प तथा चाक्षुष कल्प। दोनों ही कल्पों में भगवान् का वराह अवतार हुआ था, किन्तु स्वायम्भुव कल्प में उन्होंने ब्रह्माण्ड के जल के भीतर से पृथ्वी को ऊपर उठाया था जबकि चाक्षुष कल्प में उन्होंने प्रथम असुर हिरण्याक्ष का वध किया था। स्वायम्भुव कल्प में उन्होंने श्वेत रंग धारण किया था और चाक्षुष कल्प में लाल। विदुर ने पहले ही इनमें से एक के विषय में सुन रखा था और अब वे दूसरे के विषय में सुनने का प्रस्ताव कर रहे थे। ये दोनों भिन्न-भिन्न वर्णित अवतार एक ही पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं।
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