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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.14.24 
एतस्यां साध्वि सन्ध्यायां भगवान् भूतभावन: ।
परीतो भूतपर्षद्‍‌भिर्वृषेणाटति भूतराट् ॥ २४ ॥
 
शब्दार्थ
एतस्याम्—इस वेला में; साध्वि—हे सती; सन्ध्यायाम्—दिन तथा रात के सन्धिकाल में (संध्या समय); भगवान्—भगवान्; भूत-भावन:—भूतों के हितैषी; परीत:—घिरे हुए; भूत-पर्षद्भि:—भूतों के संगियों से; वृषेण—बैल की पीठ पर; अटति— भ्रमण करता है; भूत-राट्—भूतों का राजा ।.
 
अनुवाद
 
 इस वेला में भूतों के राजा शिवजी, अपने वाहन बैल की पीठ पर बैठकर उन भूतों के साथ विचरण करते हैं, जो अपने कल्याण के लिए उनका अनुगमन करते हैं।
 
तात्पर्य
 शिवजी या रुद्र भूतों के राजा हैं। भूतगण शिवजी की इसलिए पूजा करते हैं कि धीरे धीरे वे आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर अग्रसर हो सकें। मायावादी दार्शनिक अधिकांशतया शिवजी के पूजक होते हैं और श्रीपाद शंकराचार्य को शिवजी का अवतार मान लिया जाता है, जो मायावादी दार्शनिकों को ईशविहीनता (नास्तिकता) का उपदेश देते हैं। भूतों के भौतिक शरीर नहीं होते, क्योंकि वे आत्महत्या जैसा घोर पापकर्म किये रहते हैं। मानव समाज में भूतवत् पात्रों का अन्तिम गन्तव्य यह है कि वे भौतिक या आध्यात्मिक आत्महत्या की शरण लें। भौतिक आत्महत्या से भौतिक शरीर की और आध्यात्मिक आत्महत्या से व्यष्टि स्वरूप की हानि होती है। मायावादी दार्शनिक अपने व्यष्टित्व को खोकर निर्विशेष आध्यात्मिक ब्रह्मज्योति के अस्तित्व में लीन होना चाहते हैं। शिवजी भूतों पर अत्यधिक कृपालु होने के कारण इस ताक में रहते हैं कि निन्दित होने पर भी इन भूतों को भौतिक शरीर प्राप्त हों। वे उन्हें ऐसी स्त्रियों के गर्भ में स्थापित करते हैं, जो परिस्थिति तथा काल के प्रतिबन्धों की परवाह न करके संभोगरत होती हैं। कश्यप यह बात दिति को समझा देना चाहते थे जिससे वह कुछ क्षण तक प्रतीक्षा कर सके।
 
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