श्मशानचक्रानिलधूलिधूम्र-
विकीर्णविद्योतजटाकलाप: ।
भस्मावगुण्ठामलरुक्मदेहो
देवस्त्रिभि: पश्यति देवरस्ते ॥ २५ ॥
शब्दार्थ
श्मशान—श्मशान भूमि; चक्र-अनिल—बवंडर; धूलि—धूल; धूम्र—धुआँ; विकीर्ण-विद्योत—सौन्दर्य के ऊपर पुता हुआ; जटा-कलाप:—जटाओं के गुच्छे; भस्म—राख; अवगुण्ठ—से ढका; अमल—निष्कलंक; रुक्म—लाल; देह:—शरीर; देव:—देवता; त्रिभि:—तीन आँखों वाला; पश्यति—देखता है; देवर:—पति का छोटा भाई; ते—तुम्हारा ।.
अनुवाद
शिवजी का शरीर लालाभ है और वह निष्कलुष है, किन्तु वे उस पर राख पोते रहते हैं। उनकी जटा श्मशान भूमि की बवंडर की धूल से धूसरित रहती है। वे तुम्हारे पति के छोटे भाई हैं—और वे अपने तीन नेत्रों से देखते हैं।
तात्पर्य
शिवजी न तो सामान्य जीव हैं न ही वे विष्णु या पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की कोटि में आते हैं। वे ब्रह्मा समेत किसी भी जीव से अधिक शक्तिमान हैं फिर भी वे विष्णु के समान-स्तर पर नहीं हैं। चूँकि शिव भगवान् विष्णु जैसे ही हैं, अतएव वे भूत, वर्तमान तथा भविष्य देख सकते हैं। उनका एक नेत्र सूर्य के समान है, दूसरा चन्द्रमा के समान तथा उनका तीसरा नेत्र जो उनकी भौहों के बीच में स्थित है, अग्नि तुल्य है। वे अपने बीचवाले नेत्र से अग्नि उत्पन्न कर सकते हैं और वे ब्रह्मा समेत किसी भी जीव को विनष्ट कर सकते हैं फिर भी वे न तो किसी अच्छे घर में तडक़ भडक़ से रहते हैं, न ही उनके कोई भौतिक सम्पत्ति है यद्यपि वे भौतिक जगत के स्वामी हैं। वे अधिकांशतया श्मशान में रहते हैं जहाँ शव जलाये जाते हैं और श्मशान के बवंडर की धूल ही उनका वस्त्र है। वे भौतिक कल्मष से रंजित नहीं होते। कश्यप ने उन्हें अपना छोटा भाई माना है, क्योंकि दिति (कश्यप पत्नी) की सबसे छोटी बहिन शिवजी को ब्याही थी। बहिन का पति उसका भाई माना जाता है। उस समाजिक सम्बन्ध से शिवजी कश्यप के छोटे भाई ठहरे। कश्यप ने अपनी पत्नी को आगाह किया कि क्योंकि शिवजी उनको संभोगरत देख लेंगे इसलिए यह वेला उपयुक्त नहीं है। हो सकता है कि दिति तर्क करती कि वे किसी एकान्त स्थान में संभोग करेंगे, किन्तु कश्यप ने उसे स्मरण कराया कि शिवजी के तीन नेत्र हैं, जो सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि कहलाते हैं और कोई भी उनकी दृष्टि से बच नहीं सकता जिस तरह विष्णु की दृष्टि से भी कोई बच नहीं सकता। यद्यपि अपराधी को पुलिस देख लेती है, किन्तु कभी कभी उसे तुरन्त दण्ड नहीं मिलता। पुलिस उसे दण्ड दिलाने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा करती है। संभोग के लिए निषिद्ध वेला शिवजी द्वारा देख ली जायेगी और दिति भूत जैसे चरित्र वाले या ईशविहीन निर्विशेषवादी शिशु को जन्म देकर समुचित दण्ड प्राप्त करेगी। कश्यप ने इसे पहले ही देख लिया था इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी दिति को आगाह किया।
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