न यस्य लोके स्वजन: परो वा
नात्यादृतो नोत कश्चिद्विगर्ह्य: ।
वयं व्रतैर्यच्चरणापविद्धा-
माशास्महेऽजां बत भुक्तभोगाम् ॥ २६ ॥
शब्दार्थ
न—कभी नहीं; यस्य—जिसका; लोके—संसार में; स्व-जन:—अपना; पर:—पराया; वा—न तो; न—न ही; अति—अधिक; आदृत:—अनुकूल; न—नहीं; उत—अथवा; कश्चित्—कोई; विगर्ह्य:—अपराधी; वयम्—हम; व्रतै:—व्रतों के द्वारा; यत्— जिसके; चरण—पाँव; अपविद्धाम्—तिरस्कृत; आशास्महे—सादर पूजा करते हैं; अजाम्—महा-प्रसाद; बत—निश्चय ही; भुक्त-भोगाम्—उच्छिष्ट भोजन ।.
अनुवाद
शिवजी किसी को भी अपना सम्बन्धी नहीं मानते फिर भी ऐसा कोई भी नहीं है, जो उनसे सम्बन्धित न हो। वे किसी को न तो अति अनुकूल, न ही निन्दनीय मानते हैं। हम उनके उच्छिष्ट भोजन की सादर पूजा करते हैं और वे जिसका तिरस्कार करते हैं उसको हम शीश झुका कर स्वीकार करते हैं।
तात्पर्य
कश्यप ने अपनी पत्नी को बतलाया कि चूँकि शिवजी उनके साढू लगते हैं इसलिए उसे उनके प्रति अपराध करने के लिए प्रोत्साहित नहीं होना चाहिए। कश्यप ने उसे आगाह किया कि वस्तुत: शिवजी न तो किसी से सम्बन्धित हैं न ही कोई उनका शत्रु है। चूँकि वे ब्रह्माण्ड के मामलों के तीन नियंत्रकों में से एक हैं, अतएव वे हर एक पर समदृष्टि रखते हैं। उनकी महानता अतुलनीय है, क्योंकि वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के महान् भक्त हैं। कहा जाता है कि भगवान् के समस्त भक्तों में शिवजी महानतम हैं। इसीलिए उनके द्वारा छोड़ा गया भोज्य पदार्थ अन्य भक्तों द्वारा महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। भगवान् कृष्ण को अर्पित भोजन का उच्छिष्ट प्रसाद कहलाता है, किन्तु जब वही प्रसाद शिवजी जैसे महान् भक्त द्वारा खाया जाता है, तो वह महाप्रसाद कहलाता है। शिवजी इतने महान् हैं कि वे उस भौतिक सम्पत्ति की परवाह नहीं करते जिसके लिए हम सभी उत्सुक रहते हैं। पार्वती जी, जो कि साक्षात् शक्तिमयी भौतिक प्रकृति हैं, उनकी पत्नी के रूप में उनके पूर्ण नियंत्रण में हैं; फिर भी वे उनका उपयोग रिहायशी घर बनाने तक के लिए नहीं करते। वे बिना आश्रय के रहना पसन्द करते हैं और उनकी महान् पत्नी भी उनके साथ विनीत भाव से रहने के लिए राजी रहती है। सामान्य जन शिवजी की पत्नी दुर्गादेवी की पूजा भौतिक सम्पन्नता के लिए करते हैं, किन्तु शिवजी बिना किसी भौतिक इच्छा के उन्हें अपनी सेवा में लगाये रहते हैं। वे अपनी महान् पत्नी को यही उपदेश देते हैं कि सभी प्रकार की पूजाओं में विष्णुपूजा सर्वोपरि है और उससे भी बढक़र है महान् भक्त की या विष्णु से सम्बन्धित किसी भी वस्तु की पूजा।
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