श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  3.14.29 
ब्रह्मादयो यत्कृतसेतुपाला
यत्कारणं विश्वमिदं च माया ।
आज्ञाकरी यस्य पिशाचचर्या
अहो विभूम्नश्चरितं विडम्बनम् ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
ब्रह्म-आदय:—ब्रह्मा जैसे देवतागण; यत्—जिसका; कृत—कार्यकलाप; सेतु—धार्मिक अनुष्ठान; पाला:—पालने वाले; यत्—जो है; कारणम्—उद्गम; विश्वम्—ब्रह्माण्ड का; इदम्—इस; च—भी; माया—भौतिक शक्ति; आज्ञा-करी—आदेश पूरा करने वाला; यस्य—जिसका; पिशाच—शैतानवत्; चर्या—कर्म; अहो—हे प्रभु; विभूम्न:—महान् का; चरितम्—चरित्र; विडम्बनम्—केवल विडम्बना ।.
 
अनुवाद
 
 ब्रह्मा जैसे देवता भी उनके द्वारा अपनाये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। वे उस भौतिक शक्ति के नियन्ता हैं, जो भौतिक जगत का सृजन करती है। वे महान् हैं, अतएव उनके पिशाचवत् गुण मात्र विडम्बना हैं।
 
तात्पर्य
 शिवजी दुर्गा के पति हैं अर्थात् भौतिक शक्ति के नियन्ता हैं। दुर्गा साक्षात् भौतिक शक्ति हैं और उनके पति होने के कारण शिवजी भौतिक शक्ति के नियन्ता हैं। वे तमोगुण के अवतार भी हैं और भगवान् का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन देवों में से एक हैं। भगवान् के प्रतिनिधि होने से शिवजी उनसे अभिन्न हैं। वे अति महान् हैं और उनके द्वारा समस्त भौतिक भोग का परित्याग इसका आदर्श उदाहरण है कि मनुष्य को किस तरह भौतिक रूप से अनासक्त रहना चाहिए। अतएव मनुष्य को उनके पदचिह्नों का अनुसरण करना चाहिए और पदार्थ से अनासक्त रहना चाहिए। उसे गरलपान जैसे उनके असामान्य कार्यों की नकल नहीं करनी चाहिए।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥