भागवत पुराण » स्कन्ध 3: यथास्थिति » अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण » श्लोक 3 |
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| | श्लोक  | तस्य चोद्धरत: क्षौणीं स्वदंष्ट्राग्रेण लीलया ।
दैत्यराजस्य च ब्रह्मन् कस्माद्धेतोरभून्मृध: ॥ ३ ॥ | | शब्दार्थ | तस्य—उसका; च—भी; उद्धरत:—उठाते हुए; क्षौणीम्—पृथ्वी लोक को; स्व-दंष्ट्र-अग्रेण—अपनी दाढ़ के सिरे से; लीलया—अपनी लीला में; दैत्य-राजस्य—दैत्यों के राजा का; च—तथा; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; कस्मात्—किस; हेतो:—कारण से; अभूत्—हुआ; मृध:—युद्ध ।. | | अनुवाद | | हे ब्राह्मण, जब भगवान् अपनी लीला के रूप में पृथ्वी ऊपर उठा रहे थे, तब उस असुरराज तथा भगवान् वराह के बीच, युद्ध का क्या कारण था? | |
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