श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.14.30 
मैत्रेय उवाच
सैवं संविदिते भर्त्रा मन्मथोन्मथितेन्द्रिया ।
जग्राह वासो ब्रह्मर्षेर्वृषलीव गतत्रपा ॥ ३० ॥
 
शब्दार्थ
मैत्रेय: उवाच—मैत्रेय ने कहा; सा—वह; एवम्—इस प्रकार; संविदिते—सूचित किए जाने पर भी; भर्त्रा—पति द्वारा; मन्मथ— कामदेव द्वारा; उन्मथित—विवश की गई; इन्द्रिया—इन्द्रियों के द्वारा; जग्राह—पकड़ लिया; वास:—वस्त्र; ब्रह्म-ऋषे:—उस महान् ब्राह्मण ऋषि का; वृषली—वेश्या; इव—सदृश; गत-त्रपा—लज्जारहित ।.
 
अनुवाद
 
 मैत्रेय ने कहा : इस तरह दिति अपने पति द्वारा सूचित की गई, किन्तु वह संभोग-तुष्टि हेतु कामदेव द्वारा विवश कर दी गई। उसने उस महान् ब्राह्मण ऋषि का वस्त्र पकड़ लिया जिस तरह एक निर्लज्ज वेश्या करती है।
 
तात्पर्य
 एक विवाहित पत्नी तथा वेश्या में यही अन्तर है कि एक शास्त्रों के विधि-विधानों द्वारा यौन जीवन में नियंत्रित रहती है, जबकि दूसरी अनियंत्रित और एकमात्र प्रबल कामवासना द्वारा संचालित होती है। यद्यपि महर्षि कश्यप अति प्रबुद्ध थे, किन्तु वे अपनी वेश्या पत्नी के शिकार हो गये। भौतिक शक्ति इतनी प्रबल होती है।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥