श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  3.14.33 
दितिस्तु व्रीडिता तेन कर्मावद्येन भारत ।
उपसङ्गम्य विप्रर्षिमधोमुख्यभ्यभाषत ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
दिति:—कश्यप-पत्नी दिति ने; तु—लेकिन; व्रीडिता—लज्जित; तेन—उस; कर्म—कार्य से; अवद्येन—दोषपूर्ण; भारत—हे भरतवंश के पुत्र; उपसङ्गम्य—पास जाकर; विप्र-ऋषिम्—ब्राह्मण ऋषि के; अध:-मुखी—अपना मुख नीचे किये; अभ्यभाषत—विनम्र होकर कहा ।.
 
अनुवाद
 
 हे भारत, इसके बाद दिति अपने पति के और निकट गई। उसका मुख दोषपूर्ण कृत्य के कारण झुका हुआ था। उसने इस प्रकार कहा।
 
तात्पर्य
 जब कोई व्यक्ति निन्दनीय कार्य के लिए लज्जित होता है, तो वह स्वभावत: नत मुख हो जाता है। दिति को अपने पति के साथ निन्दनीय संभोग करने के बाद चेत हुआ। ऐसे संभोग की वेश्यावृत्ति की तरह भर्त्सना की जाती है। दूसरे शब्दों में, यदि नियमों का ठीक से पालन न हो तो अपनी पत्नी के साथ संभोग भी वेश्यावृत्ति के समान है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥