दितिरुवाच
न मे गर्भमिमं ब्रह्मन् भूतानामृषभोऽवधीत् ।
रुद्र: पतिर्हि भूतानां यस्याकरवमंहसम् ॥ ३४ ॥
शब्दार्थ
दिति: उवाच—सुन्दरी दिति ने कहा; न—नहीं; मे—मेरा; गर्भम्—गर्भ; इमम्—यह; ब्रह्मन्—हे ब्राह्मण; भूतानाम्—सारे जीवों का; ऋषभ:—सारे जीवों में सबसे नेक; अवधीत्—मार डाले; रुद्र:—शिवजी; पति:—स्वामी; हि—निश्चय ही; भूतानाम्— सारे जीवों का; यस्य—जिसका; अकरवम्—मैंने किया है; अंहसम्—अपराध ।.
अनुवाद
सुन्दरी दिति ने कहा : हे ब्राह्मण, कृपया ध्यान रखें कि समस्त जीवों के स्वामी भगवान् शिव द्वारा मेरा यह गर्भ नष्ट न किया जाय, क्योंकि मैंने उनके प्रति महान् अपराध किया है।
तात्पर्य
दिति को अपने अपराध का भान था और वह चाहती थी कि शिवजी उसे क्षमा कर दें। शिवजी के दो लोकप्रिय नाम हैं—रुद्र तथा आशुतोष। वे तुरन्त क्रुद्ध हो जाते हैं और क्षण भर में तुष्ट हो जाते हैं। दिति जानती थी कि तुरन्त क्रुद्ध होने के कारण वे उस गर्भ को नष्टकर सकते हैं जिसे उसने अवैध रीति से प्राप्त किया था। किन्तु वे आशुतोष भी हैं, अतएव उसने अपने ब्राह्मण पति से शिवजी को शान्त करने में सहायक बनने के लिए अनुनय-विनय की, क्योंकि उसका पति शिवजी का महान् भक्त था। दूसरे शब्दों में, हो सकता है कि शिवजी दिति पर क्रुद्ध हों, क्योंकि उसने अपने पति को नियम का उल्लंघन करने के लिए बाध्य किया था, किन्तु वे उसके पति की प्रार्थना को अस्वीकार नहीं कर सकते थे। इसलिए उसने अपने पति के माध्यम से क्षमायाचना के लिए निवेदन किया। उसने शिवजी से इस प्रकार प्रार्थना की।
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