दिति ने कहा : यह तो अति उत्तम है कि मेरे पुत्र भगवान् द्वारा उनके सुदर्शन चक्र से उदारतापूर्वक मारे जायेंगे। हे मेरे पति, वे ब्राह्मण-भक्तों के क्रोध से कभी न मारे जाँय।
तात्पर्य
जब दिति ने अपने पति से यह सुना कि उसके पुत्रों के कार्यों से बड़े बड़े महात्मा क्रोधित होंगे तो वह अत्यधिक चिन्तित हो उठी। उसने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि उसके पुत्र ब्राह्मणों के क्रोध से मारे जाँए। जब ब्राह्मण किसी पर क्रुद्ध होते हैं, तो उस समय भगवान् प्रकट नहीं होते, क्योंकि ब्राह्मण-क्रोध अपने आप में पर्याप्त होता है। किन्तु वे तब अवश्य प्रकट होते हैं जब उनका भक्त केवल दुखी होता है। भक्त कभी भी दुष्टों द्वारा दिये जाने वाले कष्टों के कारण भगवान् से प्रकट होने की प्रार्थना नहीं करता और वह रक्षा करने के लिए याचना करके उन्हें कष्ट नहीं देता। प्रत्युत भगवान् ही भक्तों को संरक्षण प्रदान करने के लिए चिन्तित रहते हैं। दिति भलीभाँति जानती थी कि भगवान् द्वारा उसके पुत्रों का वध भी उनकी कृपा ही होगी, अतएव वह कहती है कि भगवान् का चक्र तथा उनकी बाहें उदार हैं। यदि कोई भगवान् के चक्र द्वारा मारा जाता है और इस तरह वह भगवान् की बाहें देखने का भाग्यशाली होता है, तो यही उसकी मुक्ति के लिए पर्याप्त है। ऐसा सौभाग्य बड़े बड़े मुनियों को भी नहीं मिल पाता।
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