श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  3.14.43 
न ब्रह्मदण्डदग्धस्य न भूतभयदस्य च ।
नारकाश्चानुगृह्णन्ति यां यां योनिमसौ गत: ॥ ४३ ॥
 
शब्दार्थ
न—कभी नहीं; ब्रह्म-दण्ड—ब्राह्मण द्वारा दिया गया दण्ड; दग्धस्य—इस तरह से दण्डित होने वाले का; न—न तो; भूत-भय दस्य—उसका, जो जीवों को सदा डराता रहता है; च—भी; नारका:—नरक जाने वाले; च—भी; अनुगृह्णन्ति—कोई अनुग्रह करते हैं; याम् याम्—जिस जिस को; योनिम्—जीव योनि को; असौ—अपराधी; गत:—जाता है ।.
 
अनुवाद
 
 जो व्यक्ति ब्राह्मण द्वारा तिरस्कृत किया जाता है या जो अन्य जीवों के लिए सदैव भयप्रद बना रहता है, उसका पक्ष न तो पहले से नरक में रहने वालों द्वारा, न ही उन योनियों में रहने वालों द्वारा लिया जाता है, जिसमें वह जन्म लेता है।
 
तात्पर्य
 तिरस्कृत जीव योनि का व्यावहारिक उदाहरण कुत्ता है। कुत्ते इतने अधिक तिरस्कृत रहते हैं कि वे अपने ही बिरादरी वालों पर तनिक भी समवेदना नहीं दिखाते।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥