महर्षि मैत्रेय ने कहा : हे योद्धा, तुम्हारे द्वारा की गई जिज्ञासा एक भक्त के अनुरूप है, क्योंकि इसका सम्बन्ध भगवान् के अवतार से है। वे मर्त्यों को जन्म-मृत्यु की शृंखला से मोक्ष दिलाने वाले हैं।
तात्पर्य
महर्षि मैत्रेय ने विदुर को योद्धा के रूप में सम्बोधित किया, क्योंकि वे न केवल कुरुवंश से सम्बन्धित थे, अपितु वराह तथा नृसिंह अवतारों में भगवान् के वीरतापूर्ण कार्यों के विषय में सुनने के लिए उत्सुक थे। चूँकि ये जिज्ञासाएँ भगवान् के विषय में थीं इसलिए ये एक भक्त के सर्वथा अनुकूल थीं। भक्त को अन्य किसी संसारी कथा सुनने में कोई रुचि नहीं रहती। वैसे संसारी युद्ध की अनेक कथाएँ हैं, किन्तु भक्त इन्हें सुनने के लिए उन्मुख नहीं होता। भगवान् जिन युद्धकथाओं में भाग लेते हैं उनमें मृत्यु का युद्ध नहीं रहता, अपितु मायापाश के विरुद्ध युद्ध होता है, जिसके कारण मनुष्य को बारम्बार जन्म तथा मृत्यु स्वीकार करनी पड़ती है। दूसरे शब्दों में, जो व्यक्ति भगवान् की युद्धकथाओं के सुनने में आनन्द प्राप्त करता है, वह जन्म-मृत्यु के पाश से मुक्त हो जाता है। मूर्ख लोग कुरुक्षेत्र के युद्ध में कृष्ण के सम्मिलित होने के विषय में सन्देह करते हैं, क्योंकि वे यह नहीं जानते कि उनके भाग लेने से उन लोगों की मुक्ति सुनिश्चित हो गई थी जो युद्धभूमि में उपस्थित थे। भीष्मदेव ने कहा है कि कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में उपस्थित सारे लोगों को मृत्यु के बाद उन्हें अपने मूल आध्यात्मिक शरीर प्राप्त हो गये। अतएव भगवान् की युद्धकथाओं का सुनना अन्य किसी भक्ति के ही समान है।
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